आओ ज़िन्दगी के
सांवले चेहरे को निखारा जाए
क्यों अमावस की रात में
चाँद उगाया जाए
भूखे को रोटी
प्यासे को पाना पिलाया जाए
पड़ोसी के साथ मिल कर
हँसा जाए
ईमान को जीने का तरीका
बनाया जाए
अपनों को साथ रख कर
परायों को अपना बनाया जाए
अब इंसान बन कर जिया जाए
प्यार भाईचारे को
ज़िन्दगी का मकसद बनाया जाये
आओ ज़िन्दगी के
सांवले चेहरे को निखारा जाए
16-04-2012
441-22-04-12
1 comment:
जिंदगी की भागमभाग में ये सब कुछ बहुत पीछे छूट गया हैं ..
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