Sunday, October 28, 2012

दूर रहते हुए भी



नित्य की भाँति
कल रात भी चाँद
मेरे कमरे की
खिड़की से झाँक रहा था
पूरे कमरे को चांदनी से
नहला रहा था
शीतल चांदनी और खिड़की से
झांकते चाँद को देख
मन मुझसे कहने लगा
चाँद से पूछों
क्यों केवल चांदनी को
भेज कर काम चलाता
ये कौन सा रिश्ता निभाता
मेरे पूछने से पहले ही
चाँद समझ गया मन
क्या चाहता है
चाँद बोला मैं मित्रता का
रिश्ता निभाता हूँ
निरंतर दूर रह कर भी
प्रेम दर्शाता हूँ
चांदनी को नित्य धरती पर
भेजता हूँ
रात के अँधेरे को दूर कर के
तुम्हारा जीना आसान
करता हूँ
रिश्तों को निभाने के लिए
नित्य मिलना ही
आवश्यक नहीं होता
 दूर रहते हुए भी रिश्तों को
 निभाया जा सकता
संवाद बनाया जा सकता
अनेकानेक तरीकों से मित्र
मित्र की मदद कर सकता
चांदनी की
सुन्दर भेंट के साथ
चाँद सुन्दर सीख भी
दे गया
मन को भाव विव्हल
कर गया
810-52-28-10-2012
चाँद ,चांदनी,रिश्ते,मित्र,मित्रता

1 comment:

Dr,Neha Nyati said...

very nice thought!!!!!!