Thursday, July 28, 2011

इसे देखूं या उसे देखूं ?

दो चाँद

दो चाँद

जहाँ में खिले

इक ज़मीं पर

इक आसमाँ में

दोनों अक्स इक दूजे के

दिल सोच में फँसा

किसे देखूं ?,

किसे ना देखूं ?

दोनों टुकड़े दिल के मेरे

ना दिल तोड़ सकता

ना नाराज़ कर सकता

ख्यालों के

चौराहे पर खडा हूँ

निरंतर खुद से पूंछता हूँ

इसे देखूं या उसे देखूं ?

या रज़ा

उनकी पूँछ लूं ?

28-07-2011

1258-142 -07-11

जहाँ में खिले

इक ज़मीं पर

इक आसमाँ में

दोनों अक्स इक दूजे के

दिल सोच में फँसा

किसे देखूं ,किसे ना देखूं

दोनों टुकड़े दिल के मेरे

ना दिल तोड़ सकता

ना नाराज़ कर सकता

ख्यालों के

चौराहे पर खडा हूँ

निरंतर खुद से पूंछता हूँ

इसे देखूं या उसे देखूं ?

या रज़ा

उनकी पूँछ लूं ?

28-07-2011

1258-142 -07-11

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