Sunday, July 17, 2011

नए जोश से उठता हूँ, फिर से चल पड़ता हूँ

स्वप्न लोक में खोता हूँ
इच्छाओं को संजोता हूँ
मन ही मन खुश होता हूँ
आशाओं में जुटता हूँ
कुछ दिनों में थकता हूँ
निराशा से भर जाता हूँ
रुआसाँ कौने में बैठता हूँ
किस्मत को कोसता हूँ
चेहरे की चमक खोता हूँ
निरंतर स्वयं से पूछता हूँ
क्या इतना कमजोर हूँ
हार मान लूं ?
कायरता से मैदान छोड़ दूं
शर्म से विचलित होता हूँ
नए जोश से उठता हूँ
फिर से चल पड़ता हूँ
17-07-2011
1197-77-07-11

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