Tuesday, July 12, 2011

चेहरे पर चेहरा

तुम्हारे वो ख़त
सम्हाल कर रखे मैंने
जिनमें 
चाहत के नग्मे लिखे
हाल-ऐ-दिल बयाँ करा 
तुमने
ख़्वाबों के किस्से भरे
साथ मरने,
जीने के फलसफे लिखे 
उनमें अक्स 
तुम्हारा देखा मैंने
उन्हें पढ़ना खुदा की 
इबादत समझा
निरंतर 
सीने से लगा कर रखा
जाँ से भी ज्यादा 
कद्र करी उनकी  मैंने
फिर क्यों रुस्वां हो गए
क्यों दिल से निकाला 
मुझ को
कोई बहाना ना बनाना
खेल मोहब्बत का 
खेला तुमने
नहीं बख्शेगा खुदा 
तुमको
उसे भी पसंद नहीं
चेहरे पर चेहरा
बेवफायी का सिला
अब वो ही देगा 
तुमको
12-07-2011
1171-55-07-11
12-07-2011
1171-55-07-11

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