Thursday, July 14, 2011

जीवन का मर्म

सुबह का सूरज
सब को भाता
ताज़ा धूप सब को
सुहाती
चंचल बचपन सी
लगती
दोपहर का सूरज
आग उगलता
देखना संभव ना होता
धूप की गर्मी बेहाल
 करती
शाम का सूरज
थका मांदा
असहाय दिखता 
नम्र धूप चुपचाप
रहती
सूरज की जीवन
सुबह प्रारम्भ होता
शाम ढले समाप्त होता
इंसान को निरंतर
जीवन का मर्म
समझाता
14-07-2011
1179-62-07-11

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