Sunday, July 31, 2011

यादों की खुमारी

सबा कानों को लगती

उसकी आवाज़ कहीं दूर से

आती महसूस होती

आसमान से रहम की

बरसात होती

मेरी आहें बूँदें बन

रिमझिम बरसती

यादों की खुमारी बढ़ती

सुर्ख तेज़ धूप

ख़्वाबों की लड़ी तोडती

आँख खुलती

हकीकत निरंतर लौट

कर आती

ख्यालों पर बर्फ पड़ती

सांसें ठंडी होती

वो आसमान से देखती

रहती

ग़मों की ठंडक दूर

नहीं होती

ज़िन्दगी उम्मीद में

गुजरती रहती

(सबा =प्रात:काल की हवा)

31-07-2011

1276-160-07-11

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