दरख्तों के
लम्बे साए
सूरज की
किरणों के साथ
अँधेरे के
घूँघट से निकल
पड़ते
कभी छोटे कभी
लम्बे होते
बहती बयार में
दरख्तों के
साथ
खुशी से झूमते
उन्हें पता है
सूरज के ढलते
ही
उन्हें भी
अँधेरे में छुपना
पडेगा
डूबते के साथ
उन्हें भी
डूबना होगा
अपना
अस्तित्व खोना
होगा
जब तक
अस्तित्व है
झूम सको
जितना झूम लो
नहीं तो
पछताना होगा
06-06-2012
574-24-06-12
No comments:
Post a Comment