Thursday, June 7, 2012

लूटने की तमन्ना में,खुद लुट जाते हो



लौट जाते घरोंदों में
भूल जाते चुग्गा दाना
विश्राम करते रात भर
तरोताजा उठते सवेरे में
तुम जागते हो रात भर
उठते अलसाए सवेरे में
अधिक पाने की इच्छा में
थके मांदे जुट जाते हो
ना तन को आराम
ना मन को विश्राम देते हो
ना हँसते हो ना गाते हो
भूल जाते हो
और भी बहुत कुछ
चाहिए जीवन में
डूबते जाते हो
इच्छाओं के समंदर में
 अंत तक
चैन नहीं पाते हो
लूटने की तमन्ना में
खुद लुट जाते हो
06-06-2012
575-25-06-12

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