सब आँखें
बंद कर चल रहे हैं
फिर भी गिरने से
डर रहे हैं
सुकून की तलाश में
नफरत के
शोले भड़का रहे हैं
काँटों की डगर को
फूलों की
सेज समझ रहे हैं
बंद पलकों से
सुनहरे सपने देख रहे हैं
खुद पत्थर मार रहे हैं
फूलों की ख्वाहिश
रख रहे हैं
सब आँखें
बंद कर चल रहे हैं
02-06-2012
551-71-05-12
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