इच्छाओं की
कस्तूरी
मनमोहिनी सुगंध
से
मुझे निरंतर
लुभाती
संतुष्टी के
पथ से
डिगाने का
निष्फल प्रयत्न
करती
मेरे संयम की
बार बार
परीक्षा लेती
कभी मन करता
सब सूंघते कस्तूरी
को
मैं क्यों पीछे
रहूँ ?
प्रश्न मन का
द्वार
खटखटाता
क्यों फिर भी
कोई खुश नहीं?
उत्तर तो नहीं
मिलता
स्वयं ही तय
कर लेता हूँ
जब किसी ने
भी
कामनाओं के
संसार में
चैन नहीं पाया
सब इच्छाओं
की कस्तूरी
सूंघ कर भी
बेचैन हैं
मैं क्यों अपनी
बेचैनी बढाऊँ?
जैसे हूँ वैसे
ही खुश रहूँ
अधिक की कामना
करे बिना
कर्म करता रहूँ
जो दिया इश्वर
ने उसे
खुशी से स्वीकार
करूँ
उसी ने दिया
सब कुछ ,
वो चाहेगा तो
बिना मांगे
ही दे देगा
25-06-2012
590-40-06-12
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