Thursday, June 7, 2012

मन की गहराइयों में



मन की गहराइयों में
इर्ष्या द्वेष के बादल
घनघोर बरस रहे हैं
प्रेम मन का द्वार
बार बार
खटखटा रहा है
प्रवेश पाने में असफल
घबरा कर मन के
मुहाने से ही लौट
रहा है
कब बादल विश्राम लें
प्रेम मन में बस जाए
प्रतीक्षा में व्याकुल है
07-06-2012
580-30-06-12

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