मन की गहराइयों में
इर्ष्या द्वेष के बादल
घनघोर बरस रहे हैं
प्रेम मन का द्वार
बार बार
खटखटा रहा है
प्रवेश पाने में असफल
घबरा कर मन के
मुहाने से ही लौट
रहा है
कब बादल विश्राम लें
प्रेम मन में बस जाए
प्रतीक्षा में व्याकुल है
07-06-2012
580-30-06-12
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