Tuesday, June 26, 2012

मेरी आत्मा



शरीर की
कितनी पडतों के
नीचे दबी है मेरी आत्मा
मुझे पता नहीं
शरीर में कहाँ छुपी है
मेरी आत्मा
मुझे पता नहीं
इतना अवश्य पता है
निरंतर कुलबुलाती है
मेरी आत्मा
जब देखती है
बच्चों,स्त्रियों.बढे,बूढों
निरीह जानवरों पर
अत्याचार
रोती है मेरी आत्मा
जब देखती है
दोगलापन,असत्य
अहम्,अहंकार से
भरे लोगों को
कुछ कह तो नहीं पाती
मेरी आत्मा
पर चित्कार अवश्य
करती है
चिल्ला कर कहती है
तुम कभी ऐसा मत करना
जिस दिन
तुमने कुछ ऐसा सोचा भी
मैं तुम्हें
छोड़ कर चली जाऊंगी
फिर तुम्हें भी अमानुष
बन कर जीना पडेगा
जीवन में
कभी चैन नहीं मिलेगा
26-06-2012
598-48-06-12


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