Sunday, April 17, 2011

उनको भी एक दिन जाना है ,क्यूं इंसान निरंतर भूलता

पड़ोसी का निधन हुआ
भारी ह्रदय से 
दाह संस्कार में शामिल हुआ
दाह संस्कार होने  तक
लोगों की बातें सुनता रहा
कार्य कलाप देखता रहा
मन में व्यथित होता रहा
कोई हाल चाल पूंछ रहा
कोई मोबाइल पर बतिया रहा
किसी को घर जाने की जल्दी
कोई हंसी मज़ाक में व्यस्त
कोई मृतक के गुणगान
कर रहा
कोई बुराइयां बता रहा
किसी को
उसके धन की चिंता
किस को कितना मिलेगा
हिसाब किताब  कर रहा
मृतक के
संसार से जाने का दुःख कम
मौत पर
शामिल होने  की  रस्म
निभाना बाकी रह गया 
उनको भी एक दिन जाना है
क्यूं इंसान निरंतर भूलता
17-04-2011
690-114-04-11

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