Friday, April 29, 2011

यादों की वर्षा

बरामदे में बैठा
बरसात का आनंद
ले रहा था
बरसात रुकी ,
पेड़ों के पत्ते धुल गए थे ,
तरोताजा दिख रहे थे
पानी की कुछ बूँदें
पेड़ों की पत्तियों से
अब भी टपक रही थी
गीली मिट्टी की
सौंधी खुशबू
अभी बाकी थी ,
आसमान खुल गया
काले बादल अब
कम हो गए
पक्षी आकाश में
फिर से विचरने लगे
ठंडी हवा बह रही थी
द्रश्य देख कर
उसे अपनी जवानी के
दिन याद आने लगे
निरंतर यादों की वर्षा
दिमाग में होने लगी
जवानी चहकते दिनों की
सुगंध आने लगी
खट्टी मीठी बातों पर
कभी हंसी आती
कभी तनाव की लकीरें
चेहरे पर आती
बुढापे से परेशान
अशांत मन
भाग कर पुराने दिनों में
लौट गया
तभी पत्नी की आवाज़ ने
ध्यान भंग किया
चाय पियोगे,सुन कर फिर
वर्तमान में लौट आया
ठीक वैसा ही महसूस
कर रहा था
जैसे वर्षा रुकने पर लगा था
यादों की वर्षा ने
दिमाग को धो दिया था
तरोताजा गया था
यादों की कुछ बूँदें
अब भी टपक रही थी
अन्दर जाने के लिए उठा
परमात्मा से
प्रार्थना करने लगा
जवानी की यादों की
बरसात होती रहे
बुढापे की
धूल साफ़ होती रहे
जीवन में ताज़ापन
बना रहे
29-04-2011
777-197-04-11

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