Sunday, April 17, 2011

कभी हंसना कभी रोना,शायद तरीका ज़िन्दगी का

मन मेरा
निरंतर भटकता
यादों में खोता रहता
जो रहे नहीं ,उन्हें ढूंढता
उनके साथ
 बिताए पलों में खोता
सपने में भी धोखा मुझे देते
एक बार भी नहीं दिखते
कभी ख्यालों में खोता
इक दिन
मुझे भी दुनिया से जाना होगा
क्या तब उनसे मिलना होगा?
या वहाँ भी ढूंढना होगा ?
ये कैसा विधान परमात्मा का ?
पहले देता,फिर लेता
क्यों निरंतर इम्तहान लेता
जब बिछड़ना ही होता
क्यों फिर अपनों से मिलाता
समझ नहीं पाया
फलसफा ज़िन्दगी का
कभी हंसना कभी रोना
शायद
तरीका ज़िन्दगी का
17-04-2011
692-116-04-11
    

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