Monday, April 25, 2011

निरंतर देने वाला,लेने वाला भी बनता

विधि की
 विडंबना देख आश्चर्य होता
जो मार्ग दिखाता
रूप परमात्मा का कहलाता
वो भी
मनुष्य की शरण में जाता
जीवित रहने के लिए सहारा
उसका लेता
सफल होता, तो और जीता
असफल होने पर मोक्ष को
प्राप्त होता
अंतिम क्रिया मनुष्य ही करता
निरंतर देने वाला
लेने वाला भी बनता
इश्वर का नियम कहो
या उसकी इच्छा कहो
उसका अंत भी मनुष्य सा
होता
25-04-2011
762-182-04-11
(पुट्टापूर्थी साईं बाबा के निधन पर आए विचार)

1 comment:

Unknown said...

बहुत शानदार तरीके से आपने अपनी बात कविता में कह दी है.