Monday, April 18, 2011

वो छुप,कर वार करते


वो
छुप,कर वार करते
रोज़ पैंतरे नए बदलते
गुबार मन के निकालते
हर कोशिश बदनाम
करने की करते
वार जितने खाली जाते
उतना ही और बौखलाते
मैंने कुछ नहीं करा
निरंतर सफाई देते
दिल का चोर बाहर
झांकता
क्या दिल में पल रहा
सुनने वालों को पता चलता
इक दिन दुनिया को
फितरत का पता ज़रूर पड़ता
दोगला चेहरा कितना भी
छुपाएँ
इक दिन साफ़ साफ़ दिखता
नफरत से जीने वालों का
यही हाल होता
सच परदे से बाहर ज़रूर
आता
   18-04-2011
698-122-04-11

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