बड़े कमरों के
दरवाज़े छोटे हो गए
दिल छोटे
दिल छोटे
दरवाज़े बड़े हो गए
सब अपने में समेटना
सब अपने में समेटना
चाहते
पर देना नहीं चाहते
देना सब भूल गए
सिर्फ लेना
पर देना नहीं चाहते
देना सब भूल गए
सिर्फ लेना
अब ध्येय रह गया
निरंतर स्वार्थ बढ़ रहा
आदमी "मैं " में सिमट गया
"मैं "और "मेरा"
दिल-ओ-दिमाग में
निरंतर स्वार्थ बढ़ रहा
आदमी "मैं " में सिमट गया
"मैं "और "मेरा"
दिल-ओ-दिमाग में
बस गया
रास्ते से भटक गया
रास्ते से भटक गया
इश्वर से दूर हो गया
फिर भी मंजिल पाना
फिर भी मंजिल पाना
चाहता
जीवन को सार्थक बनाना
जीवन को सार्थक बनाना
चाहता
सुकून से रहना चाहता
सुकून से रहना चाहता
09-04-2011
634-67-04-11
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