Sunday, April 17, 2011

हर मांगने वाला भिखारी नहीं होता


बरसों पहले चौराहे पर
 लाल बत्ती हुयी
गाडी रोकनी पडी
निरंतर कोई ना कोई
गाडी रुकने पर पास आता
पैसे माँगता
मैं सब को भिखारी समझता
कभी देता कभी मना करता 
करीब चौदह वर्ष का लड़का
दौड़ कर गाडी के पास आया
कहने लगा
दो दिन से भूखा प्यासा है
पांच रूपये दे दो
क्रोध में मैंने कहा
काम क्यों नहीं करते ?
क्यों भीख मांगते ?
उसने
जवाब दिया आप काम दे दो
मैंने सोचा
अनजान को क्यों काम दूं ?
क्या पता कौन  है ?
कैसे विश्वाश करूँ ?
यह सोच आगे बढ़ गया
वो पीछे
बाबूजी,बाबूजी चिल्लाता रहा
महीने भर बाद
उसी चौराहे पर गाडी रुकी
भीड़ हो रही थी
पुलिस वाले
एक लड़के को पकड़ कर
ले जा रहे थे
किसी ने बताया किसी कार से
फल चुरा रहा था
मैं भी जिज्ञासा में वहाँ पहुंचा
वो ही लड़का था
देखते ही पहचान गया
शर्म,ग्लानी से भर गया
उसको कोई काम देता तो
पेट भरने के लिए चोरी ना करता
एक किशोर को 
अपराधी बनने से रोकता
उस वाकये को
याद कर खुद पर ही क्रोध आता
हर मांगने वाला भिखारी
नहीं होता
हालात का मारा भी होता
17-04-2011
691-115-04-11

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