Tuesday, April 12, 2011

बगैर जूते खाए,साबुत घर लौट आए हो

पचास की उम्र थी
कपड़ों पर इत्र
बालों में खिजाब लगा कर
हाथ में गुलाब का फूल
आँखों पे नज़र का
मोटा चश्मा लगाए
बन ठन कर,
मुस्काराते हुए
बहुत उम्मीद से
वो घर से निकले
कोई खूबसूरत उनकी
तरफ देखेगा
इज़हार-ऐ-मोहब्बत करेगा
उनका सपना पूरा होगा
बड़ी हसरत से 
हर मोहतरमा को देखते
मुस्काराते
पर जवाब ना मिलता
पूरे शहर का चक्कर काटते रहे
पैर थक गए
पर किसी ने झाँका तक नहीं
मायूस घर लौट रहे थे
तभी मित्र मिला
उसे दुखड़ा सुनाया
उसने ऊपर से नीचे तक
उन्हें देखा और बोला 
शेरवानी फटी हुयी
नाड़ा लटक रहा है,
पान की पीक कपड़ों पर
गिरी हुयी
तुझसे कौन मोहब्बत का
इज़हार करेगा
निरंतर गनीमत समझो
बगैर जूते खाए
साबुत घर लौट आए हो 
12-04-2011
658-91-04-11

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