Tuesday, April 12, 2011

मेरा बहम मिट्टी में मिला गए


बड़े अरमानों से
छिप छिप कर उनके
घर पहुंचा
हौले से दरवाज़ा खटखटाया
मन ही मन ख्वाब देख
रहा था
इज़हार-ऐ-मोहब्बत करूंगा
उनकी रज़ा सुनूंगा
वो घर से बाहर आये
जोर से चिल्लाए
क्यूं आये ?
कह कर अन्दर चले गए
मेरा बहम
मिट्टी में मिला गए
मैं अकेला खडा
निरंतर मोहल्ले वालों के
सवालों का जवाब
देता रहा
अपने किस्मत पर
रोता रहा
12-04-2011
659-92-04-11

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