Sunday, April 24, 2011

प्रायश्चित (लघु कथा )


प्रायश्चित
(लघु कथा)
वो बिन ब्याही माँ का बेटा था,पैदा हुआ तब से लोगों को
आपस में फुसफुसाते,घूरते हुए देखा था
बचपन में कुछ नहीं समझता था . सदा सोचता रहता था
क्यों उसके साथ निरंतर और बच्चों से अलग व्यवहार होता है ?
पर कारण का पता ना चला
बड़ा हुआ तो सब समझ में आने लगा
क्यों माँ ने उसे कभी पिता का नाम नहीं बताया
पता चल गया था, माँ का विधिवत ब्याह नहीं हुआ था
अजीब सी कुंठा से त्रस्त रहता था ,प्रतिशोध में जीने लगा
निरंतर  सोचने लगा माँ के साथ हुए व्यवहार का बदला लेगा,
अपने पिता को ढूंढ कर सज़ा देगा.
वक़्त के साथ पिता का पता चला,बदला लेने का मौक़ा ढूँढने लगा
लेकिन नौकरी के लिए दूसरे शहर में रहने लगा
दफ्तर में एक लडकी से घनिष्टता हुयी ,
आपस में सब तरह की बातें होती थी
उसने अपनी ज़िन्दगी की कहानी उसे बतायी
लडकी ने भी अपनी कहानी सुनायी 
वो भी  एक  बिन ब्याही माँ की बेटी थी
एक देवता स्वरुप  व्यक्ति ने उसे गोद लिया था,
उसे  पाल पोस कर बड़ा किया
नाम पूंछने पर पता चला कि वो कोई और नहीं उसके पिता थे
समझ नहीं आ रहा था पिता से बदला ले
या लडकी के लिए जो उन्होंने किया उसका धन्यवाद दे .
आखिर तय किया ,अपने  गुरूजी से पूंछेगा
अपने गुरु से मिलने पर उसने सारा किस्सा बताया ,
गुरूजी ने जवाब दिया, बेटा उन्हें क्षमा कर दो ,
वो प्रायश्चित कर रहे हैं , उन्हें अपराध बोध  हुआ होगा
इसलिए विवाह भी नहीं किया ,एक कन्या को पुत्री  बनाया
उनसे जा कर मिलो,तुम्हारी माँ ने भी विवाह नहीं किया ,
दोनों को फिर से मिलाने का पुन्य करो
24-04-2011
751-171-04-11

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