Monday, April 25, 2011

कैक्टस की व्यथा

क्यों मुझ पर हँसते हो
मुझ से नफरत करते हो
बिना कारण दुःख देते हो
अपनी इच्छा से कैक्टस
नहीं बना
मुझे इश्वर ने ये रूप दिया
उसकी इच्छा का सम्मान करो
मुझ से भी प्यार करो
माली की ज़रुरत नहीं मुझको
स्वयं पलता हूँ
कम पानी में जीवित रहकर
पानी बचाता हूँ
जिसके के लिए तुम
सब को समझाते
वो काम में खुद ही करता
भयावह रेगिस्तान में
हरयाली का अहसास कराता
 खूबसूरत फूल मुझ में भी खिलते
मेरे तने से तुम भोजन पाते
आंधी तूफानों को
निरंतर हिम्मत से झेलता
कभी किसी से
शिकायत नहीं करता
तिरस्कार सब का सहता
विपरीत परिस्थितियों में जीता हूँ
फिर भी खुश रहता हूँ
25-04-2011
763-183-04-11

1 comment:

Unknown said...

कैक्टस के जरिए जीवन का शानदार संदेश आपने दिया है. आपका प्रयास सफल है. बहुत शानदार और अद्भुत

चखिए तीखा-तड़का
सीएम ऑफिस से शर्मा को फोन