Sunday, April 10, 2011

उलझन


उलझन
में उलझा था
उलझन

पर कुछ लिखूं
इसी उलझन में
उलझता  गया
समय बीतता गया
दिमाग और उलझता 
गया
कैसे इस उलझन को 
सुलझाऊं ?
सोचने लगा,जितना  
सोचता 
उतना और  उलझता
तभी ख्याल आया
पढने वाले भी 
पढ़ते ,पढ़ते
उलझ गए होंगे
उनको उलझन से
मुक्त करने के लिए
उलझन पर उलझना
बंद किया

उलझन पर लिखना
निरंतर
उलझन बन गया
जब भी उलझन
शब्द आता
मैं फिर उलझता
10-04-2011
638-71-04-11

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