शहर में आने से पहले
ख़त लिखा था उन्होंने
क्यूं हमसे मिले नहीं
हमें अब तक पता नहीं
कहाँ गुम हो गए
मालूम नहीं
आग लगा कर जलती
छोड़ गए
अब बुझाऊँ किस से
मोहब्बत का पानी भी नहीं
या तो याद करता रहूँ
आग को हवा देता रहूँ
या आग खुद-बी-खुद
बुझ जाए
इंतज़ार करता रहूँ
मगर डरता हूँ
गर फिर उनका ख़त आया
तो क्या जवाब उनको दूं ?
निरंतर
इसी उलझन में उलझा हूँ
कभी आग को हवा देता हूँ
कभी खुद-बी-खुद
बुझने का इंतज़ार
करता हूँ
ख़त लिखा था उन्होंने
क्यूं हमसे मिले नहीं
हमें अब तक पता नहीं
कहाँ गुम हो गए
मालूम नहीं
आग लगा कर जलती
छोड़ गए
अब बुझाऊँ किस से
मोहब्बत का पानी भी नहीं
या तो याद करता रहूँ
आग को हवा देता रहूँ
या आग खुद-बी-खुद
बुझ जाए
इंतज़ार करता रहूँ
मगर डरता हूँ
गर फिर उनका ख़त आया
तो क्या जवाब उनको दूं ?
निरंतर
इसी उलझन में उलझा हूँ
कभी आग को हवा देता हूँ
कभी खुद-बी-खुद
बुझने का इंतज़ार
करता हूँ
10-04-2011
640-73-04-11
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