Saturday, April 9, 2011

बहुत शिद्दत से इबादत की थी हमने

बहुत शिद्दत से
इबादत की थी हमने
मांगे थे खुदा से
हसीन सपने हमने
लम्हा,लम्हा खुशी से जी सकूं
मोहब्बत को मकसद बना सकूं
ऐसा हमसफ़र माँगा था हमने
जवाब में हमें रत जगे मिले
अपनों के भेष में दुश्मन मिले
मुस्काराते हुए कातिल मिले
निरंतर दिल-ऐ-बेवफा मिले
दरवाज़ा खुदा का खटखटा रहा
जो दिया मुझ से वापस ले ले
गुजरा वक़्त मुझे फिर से दे दे
09-04-2011
632-65-04-11

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