बार बार सपनों में आती हो तुम
कुछ देर ठहर लौट जाती हो तुम
कहाँ से आती,कहाँ जाती हो तुम?
कभी भी नहीं बताती नहीं हो तुम
दिल-ओ-जान में छा गयी हो तुम
रोम , रोम में बस गयी हो तुम
कब तक यूँ ही सताती रहोगी तुम?
निरंतर इंतज़ार कराती रहोगी तुम
अब आदत मेरी बन गयी हो तुम
हकीकत में मुझसे कब मिलोगी तुम
10-04-2011
646-79-04-11
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