Saturday, June 2, 2012

सब आँखें बंद कर चल रहे हैं



सब आँखें
बंद कर चल रहे हैं
फिर भी गिरने से
डर रहे हैं
सुकून की तलाश में
नफरत के
शोले भड़का रहे हैं
काँटों की डगर को
फूलों की
सेज समझ रहे हैं
बंद पलकों से
सुनहरे सपने देख रहे हैं
खुद पत्थर मार रहे हैं
फूलों की ख्वाहिश
रख रहे हैं

सब आँखें
बंद कर चल रहे हैं

02-06-2012
551-71-05-12

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