Sunday, March 4, 2012

संगत में कुछ तो सीख जाऊंगा

खुश हूँ कोई तो
जानने लगा है मुझको
ठीक से प
हचानने लगा है मुझको
जो भी कहता हूँ
ध्यान से सुनता है
चुप रहकर सर हिलाता है
हाँ में हाँ मिलाता है
शायद वो भी वही
सह रहा है
जो मैं सह रहा हूँ
वही भुगत रहा है
जो में भुगत रहा हूँ
वो चुप रहना सीख गया
मैं अब भी
एक ही गीत गाता हूँ
अपने दुखो का रोना रोता हूँ
उनका बाज़ार लगाता हूँ
जानता हूँ
कोई खरीददार नहीं
मिलेगा
खुद का युद्ध
खुद को ही लड़ना पड़ता  
खुद को ही चुप रह कर
सहना  सीखना होगा
वो सहना सीख गया
मुझे सीखना बाकी है
इसी आशा मैं
उससे निरंतर मिलता हूँ
संगत में कुछ तो सीख
जाऊंगा
मन की कुंठाओं पर
एक दिन विजय
पा लूंगा
04-03-2012
291-26-03-12

1 comment:

रश्मि प्रभा... said...

विजय तो मिल चुकी ... संगत जिसकी हो , आपदोनो खुशनसीब हैं