उन्होंने
दीवाना समझा
मैं परवाना,शमा का
उसकी रोशनी में होश
मैं परवाना,शमा का
उसकी रोशनी में होश
खोता
अपना आप खिंचा
अपना आप खिंचा
चला जाता
गर्मी-ऐ-हसरत में जलता
गर्मी-ऐ-हसरत में जलता
रहता
मगर, उफ़ ना करता
खुशी से हर सितम सहता
निरंतर
मगर, उफ़ ना करता
खुशी से हर सितम सहता
निरंतर
उनके आगोश में रहना
चाहता
वो बेखबर
माहौल को रोशन
वो बेखबर
माहौल को रोशन
करते,
खुद अँधेरे में जीते
खुद अँधेरे में जीते
रहते
08-04-2011
08-04-2011
626-59-04-11
2 comments:
बहुत सुंदर कविता ..
सुन्दर अभिव्यक्ति ....
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