Thursday, January 19, 2012

क्यूं हद से गुजर जाते हैं हम ?

गुजर जाते हैं हम ?
रिश्तों में हद को
लांघ जाते है हम
तहजीब की हदें पार
कर जाते हैं हम
खुद की रज़ा को
दूसरों की रज़ा समझ
लेते हैं हम
जाती ज़िन्दगी पर
सवाल करते हैं हम
जाती लम्हों में
घुसपैठ करते है हम
क्यों रिश्तों को ठीक से
निभाते नहीं हम
छोटी छोटी बातों को
तूल देते हैं हम
दूरियों के लिए
खुद को ज़िम्मेदार
मानते नहीं हम
क्यूं हद से गुजर
जाते हैं हम ?
19-01-2012
59-59-01-12

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

सुंदर प्रस्तुति .. बधाई