Tuesday, January 31, 2012

लम्हों का अहसास

रेस्तरां के
कौने में पडी मेज़
मुन्तजिर थी मेरी
रेस्तरां में कदम रखते ही
उम्मीद से मेरी तरफ
देखने लगती
वो मेरे साथ होंगी
मेज़ पर आ बैठेंगे
आँखों में आँखें डाल
घंटों बैठेंगे
एक दूसरे की साँसों में
खुशबू घोलेंगे
कई वादे करेंगे
दिल नहीं मानेगा
फिर भी दोबारा
मिलने के लिए बिछड़ेंगे
उसे पता नहीं
अब वो दुनिया से
कूच कर गए
जाते जाते अपना
पता भी नहीं छोड़ गए
नहीं तो उसकी ख्वाइश
उन तक पहुंचा देता
उसे ख्याल नहीं था
मैं अपनी यादों के
उन हंसी लम्हों का
अहसास करने के लिए
कौने में पडी मेज़ को
देखने के लिए
रेस्तरां में आता हूँ
31-01-2012
89-89-01-12

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