Thursday, January 26, 2012

खुदा की ये कैसी मर्जी है


खुदा की ये कैसी मर्जी है
ज़िन्दगी
अज़ब मोड़ पर खडी है
इक तरफ खिजा का आलम
दूसरी तरफ बहार छा रही है
कभी लबों पर मुस्कान आती
कभी आँखें नम हो जाती है
कभी हँस हँस कर बातें होती
कभी जुबां लडखडाने लगती है
अब खुदा से सिर्फ एक अर्जी है
चाहे तो मुझ से हँसी छीन ले
आँखों की नमी भी साथ ले ले
मेरा सुकून मुझे वापस दे दे
निरंतर इत्मीनान से जीने दे
26-01-2012
82-82-01-12

1 comment:

induravisinghj said...

मेरा सुकून मुझे वापस दे दे
निरंतर इत्मीनान से जीने दे..
aameen!!!!
aisa hi hoga...