अपने
ज़ज्बातों को कैसे
छुपाऊँ?
दिल की आग को कैसे
बुझाऊँ
चाहत को सीने में
दबा कर कैसे रखूँ?
ख्यालों के समंदर को
उफनने से कैसे रोकूँ?
ख्वाबों में उनसे कैसे
ना मिलूँ?
हसरतों को मचलने
कैसे ना दूं?
क्यूं ना उनसे ही
पूछ लूं?
ज़रिये नज़्म
हाल-ऐ-दिल बता दूं
या तो वो समझ जायेंगे
ज़रिये पैगाम
अपनी रज़ा बता देंगे
नहीं तो मोहब्बत पर
एक और नज़्म
समझ कर पढ़ लेंगे
मेरे अरमानों को
ठंडा कर देंगे
03-01-2012
12-12-01-12
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