वक़्त की मार से
काला पड़ गया
मिटटी में दबा हुआ
लोहे का टुकडा
सदा सोचता था
कोई उसे मिटटी से निकाले
झाड पोंछ कर फिर से
काम आने लायक बना दे
किस्मत ने
उसे चमकते सोने का
साथ दे दिया
सोने का साथ मिलते ही
लोहा चमकने लगा
भ्रमित हो गया
अपने को
सोना समझने लगा
सपनों की
दुनिया में खोने लगा
राह से भटकने लगा
निरंतर सोने का सानिध्य
चाहने लगा
भूल गया था
सैकड़ों हथोड़े खाया हुआ
कई बार तपाया गया
लोहे का टुकडा था
सोने के साथ कितना भी
चमक जाए
लोहा ही रहेगा
एक दिन उसने सुन लिया
कोई कह रहा था
लोहा सोने के साथ
क्या कर रहा
तुरंत उसे याद आया
वो मात्र लोहे का टुकडा था
सोना तो सोना ही रहेगा
निरंतर चमकता रहेगा
जिसे के भी साथ रहेगा
उसकी कीमत बढ़ाएगा
सोच विचार के बाद
विनम्रता से सोने से बोला
मुझे भूलना नहीं
निरंतर साथ निभाना
दूर से ही सही
अपनी चमक से
नहलाते रहना
ज़िन्दगी के हथोडों से
बचने का तरीका बताते रहना
कभी पथ से ना डिगने देना
मंजिल तक पहुंचाना
फिर से
किसी लायक बन कर
किसी के काम आऊँ
ऐसी हिम्मत देते रहना
अपना स्नेह बनाए
रखना
19-01-2012
65-65-01-12
No comments:
Post a Comment