Sunday, January 15, 2012

कैसे अहसान चुकाएँ तुम्हारा ?

दर्द दिए लोगों ने
तुमने हमें सुकून दिया
ज़ख्म दिए लोगों ने
तुमने मरहम लगाया
लोगों ने रास्ता
दोजख का दिखाया
तुमने फिर से हँसना
सिखाया
जीना भूल गए थे
तुमने फिर से जीना
सिखाया
जो भी सिखाया तुमने
हमने ज़िन्दगी में उतारा
जानते नहीं
कैसे अहसान चुकाएँ
तुम्हारा ?
क्या करें जो दिल का
बोझ हल्का कर दे?
अहसानों के
कर्जे को कम कर दे
हमारे सुकून में इजाफा
कर दे
अहसान फिर भी चुका
ना पायेंगे
कतरा भी ना दे पायेंगे
उसका
जितना तुमने दिया
हमको
15-01-2012
46-46-01-12


1 comment:

सदा said...

जीना भूल गए थे
तुमने फिर से जीना
सिखाया
जो भी सिखाया तुमने
हमने ज़िन्दगी में उतारा
जानते नहीं
कैसे अहसान चुकाएँ
तुम्हारा ?
भावमय करते शब्‍दों का संगम ।