हालात से परेशाँ
सुकून की तलाश में
घर से निकल पडा
जहां भी
हँसते चेहरे को देखा
खुश रहने का नुस्खा
पूछने लगा
हर शख्श रो रो कर
अपने
गम बयाँ करने लगा
हर तरफ
गम का माहौल था
हर शख्श
इक ज़िंदा लाश से
कम ना था
दिखाने की होड़ में
झूठ ही हंस रहा था
हकीकत का पता
चल चुका था
मुझ से खुश
कोई ना मिला
उलटे पैर
अपनों के बीच
लौट चला
जो जैसा भी था
उसे गले लगा लिया
फिर सुकून से
रहने लगा
26-01-2012
84-84-01-12
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