Thursday, January 12, 2012

ना जाने कितने मौसम बदलेंगे


ना जाने
कितने लोगों से
कितनी
मुलाकातें बची है?
न जाने कितने दिन
कितनी रातें बची  हैं?
ना जाने कितना रोना
कितना सहना बचा है?
कब बंद हो जायेंगी आँखें
किस को पता है?
ना जाने कितने मौसम
बदलेंगे
कितने फूल खिलेंगे?
कब उजड़ेगा बागीचा
किस को पता है?
ना जाने कितनी सौगातें
मिलेंगी?
बह्लायेंगी या रुलायेंगी
किस को पता है?
जब तक जी रहा
क्यों फ़िक्र करता निरंतर
ना तो परवाह कर
ना तूँ सोच इतना
जब जो होना है हो
जाएगा
जो मिलना है मिल
जाएगा
तूँ तो हँसते गाते जी
निरंतर
जो भी मिले
उससे गले लग कर
मिल निरंतर
12-01-2012
38-38-01-12

1 comment:

***Punam*** said...

ना जाने
कितने लोगों से
कितनी
मुलाकातें बची है?
न जाने कितने दिन
कितनी रातें बची हैं?
ना जाने कितना रोना
कितना सहना बचा है?
कब बंद हो जायेंगी आँखें
किस को पता है?
ना जाने कितने मौसम
बदलेंगे
कितने फूल खिलेंगे?
कब उजड़ेगा बागीचा
किस को पता है?
ना जाने कितनी सौगातें
मिलेंगी?
बह्लायेंगी या रुलायेंगी
किस को पता है?
जब तक जी रहा
क्यों फ़िक्र करता निरंतर


बस यूँ ही कहता जा...
चलता जा निरंतर....

एक सन्देश देती सी रचना...
डा.साहेब.....
amazzing ....