Tuesday, January 31, 2012

रंग बिरंगी चिड़िया एक दिन बोली मुझसे

रंग बिरंगी चिड़िया
एक दिन बोली मुझसे
निरंतर खूब लिखते हो मुझ पर
कभी मुझसे भी तो पूछ लो
क्या लिखना है मुझ पर ?
क्या सहती हूँ ? कैसे जीती हूँ ?
कैसे उडती आकाश में ?
आज मैं ही सुनाती हूँ
मेरी कहानी
पहले ध्यान से सुन लो
फिर जो मन में आये लिख लो
पेड़ पर टंगे कमज़ोर से नीड़ में
माँ ने अंडे को सेया
तो मेरा जन्म हुआ
जीवन लेने को आतुर
दुश्मनों से बचा कर
किसी तरह माँ ने
पाल पास कर बड़ा किया
मुझे सब्र का पाठ पढ़ाया
जब तक खुद को
सम्हाल नहीं सकूं तब तक
उड़ने को मना किया
पहले फुदकना सिखाया
कुछ अनुभव के बाद मुझे
उड़ना सिखाया
तिनकों से बने नीड़ में
आंधी,तूफ़ान,
भीषण गर्मी और शीत में
निरंतर जीवन जिया
नीड कई बार उजड़ा
माँ ने हताश हुए बिना
हर बार अथक परिश्रम से
नया नीड बनाया
सदा चौकन्ना रहने का
महत्त्व बताया
मुझे आत्म रक्षा का
उपाय सुझाया
अनुभव ना ले लूं जब तक
नीड़ से दूर जाने को 
मना किया
माँ ने संतुष्ट रहना 
सिखाया
अपने सामर्थ्य के अनुरूप
जीने का मार्ग दिखाया
माँ जो भी करती थी
उन्होंने मुझे भी सिखाया
अब ,एक बात तुम से भी
पूछ लूं
क्यों मनुष्य बच्चों को सब्र से
जीने के लिए कहता
परन्तु खुद बेसब्र रहता
संतान से
संयम रखने को कहता
खुद व्यवहार में उत्तेजित होता
अनेकानेक कामनाएं
रखता
पर निरंतर असंतुष्ट रहता
संतान को भी असंतुष्ट बनाता
सदा अनुभव की बात करता
स्वयं अनुभव हीन सा
काम करता
अपने सामर्थ्य को नहीं
पहचानता
सब कुछ पास होते हुए भी
होड़ में जीता रहता
अति शीघ्र हताश हो जाता
अगर लिखना ही है तो
यह भी सब लिखना
मेरे रंग और सुन्दरत़ा पर
सब लिखते हैं
तुम से प्रार्थना है
तुम तो मेरा सच लिखना
मेरे जीवन से कुछ
तुम भी सीखना
31-01-2012
89-89-01-12

2 comments:

Urmi said...

बहुत सुन्दर और प्यारी रचना!

induravisinghj said...

सच के रूबरू कराती,मार्मिक एवं जज़बातों को उभारती अदभुत रचना।