Tuesday, March 20, 2012

बिना माँ के


साधन संपन्न,धनाढ्य ने
कमरे की खिड़की से
घनघोर बरसात का
आनंद लेते हुए देखा
माँ स्वयं भीग रही थी
पर पुत्र के सर पर
छोटी सी छतरी ताने
उसे बरसात से बचाते हुए
चली आ रही थी
उसकी आँखें नम हो गयी
सोचने लगा
इश्वर का कैसा न्याय है
उसे धन संपदा तो दिया 
पर जन्म के साथ ही
क्यों उसकी माँ को उससे
छीन लिया
आज उसे समझ आ
गया था
माँ से अधिक प्यार
देने वाला
स्वयं से अधिक दूसरे को
चाहने वाला 
माँ के सिवाय संसार में
दूसरा नहीं होता
धन कितना भी हो
बिना माँ के व्यर्थ
लगता
20-03-2012
413-147-03-12


1 comment:

meeta said...

Very true !! No wordly possession can take place of mother's love .