जीवन को
नीरस ना बनाओ
नीरस
जीवन वैसा ही होता
जैसे बिना मुस्कान
के होंठ
बिना रौशनी के नयन
बिना स्नेह के दिल
बिना हरीतिमा के पृथ्वी
बिना पंछी के गगन
बिना वात्सल्य के माँ
बिना चाँद तारों के रात
बिना भावनाओं के इंसान
बिना स्पंदन के शरीर
जीवन को नीरस ना
बनाओ
उसे जल की बहती
धारा सा बनाओ
जो निरंतर चलता रहे
हर स्थिती परिस्थिती में
आगे बढ़ता रहे
उस मैं रस डालो
होठों की मुस्कान से
प्यार के भण्डार से
आनंद और उत्साह से
छोड़ दो यादें भूत की
ना करो चिंता भविष्य की
जीवन मैं डालो
झरनों की कल कल
पक्षियों की चचहाहट
बसंत की बहार
संगीत के सुर,माँ की
ममता
आमोद प्रमोद से उसे
सजाओ
भाई चारे से निभाओ
खूब हँसो और हँसाओ
नाचो और नचाओ
जीओ और जिलाओ
जीवन को नीरस ना
बनाओ
14-03-2012
367-101-03-12
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