वो मुझ
से कहने लगा
खाट खडी कर दूंगा
मैंने जवाब दिया
खाट बैठी कहाँ है
जो खडी करोगे
वो बोला बैठी हो
खाट खडी कर दूंगा
मैंने जवाब दिया
खाट बैठी कहाँ है
जो खडी करोगे
वो बोला बैठी हो
ना बैठी हो
तुम्हारी तो खडी करूंगा
मैंने दिमाग पर
तुम्हारी तो खडी करूंगा
मैंने दिमाग पर
जोर डाला
क्या मुझ को खाट
समझ रहा है ?
आँखों से छ फुट का
आदमी नहीं दिख रहा है
मैं बोला
क्या मुझ को खाट
समझ रहा है ?
आँखों से छ फुट का
आदमी नहीं दिख रहा है
मैं बोला
आँखों की जांच करवाओ
आदमी को
आदमी को
खाट समझ रहे हो
तुम क्यों
तुम क्यों
तकलीफ करते हो
लो मैं ही
लो मैं ही
खाट खडी कर देता हूँ
यह कह कर
यह कह कर
कमरे में पडी खाट को
खडा कर दिया
गुस्से से उसका
खडा कर दिया
गुस्से से उसका
चेहरा लाल हो गया
कहने लगा
कहने लगा
मैं भी क्या करूँ
ये कहावत का कमाल है
ये कहावत का कमाल है
कहता कुछ हूँ
समझा कुछ और जाता है
समझा कुछ और जाता है
निरंतर ऐसा ही होता है
04-04-2011
604-37 -04-11
No comments:
Post a Comment