Saturday, April 2, 2011

शोर मनों में,शोर दिलों में

रात के सन्नाटे में
सुलाने के लिए
माँ लोरी सुनाती
दिन के कोलाहल में
लाडलों को नींद कैसे आती ?
किसे चिंता उनके जीवन की
सब सोचते अपनी अपनी 
शोर से बचपन शुरू होता
शोर में जीवन कटता
जहन में शोर भरा रहता
शांती का बसेरा नसीब
ना होता  
शोर मनों में,शोर दिलों में
 कहाँ अब कोई किसी को
समझता
प्यार शोर में दबा रहता
स्नेह शोर में छुप जाता
चैन इंसान निरंतर खोता
धन,आडम्बर के शोर में
सुकून खोता
02-04--11
586—19 -04-11