एक बार फिर
हम पर
तेज़ाब डाला गया
हम पर
लांछन लगाया गया
हमारे चेहरे को
झुलसाया गया
चेहरे पर चेहरा चढ़ा
बताया गया
उन्होंने भी वही किया
जो अब तक सबने किया
वही समझा जो
अब तक सबने समझा
कसूर उनका नहीं
हमारी किस्मत का है
पहले से झुलसे चेहरे को
छुपा कर
रखने का गुनाह
जो करते हैं
रखने का गुनाह
जो करते हैं
निरंतर हँसते रहते हैं
नए दोस्त बनाते हैं
उनसे
गले लग कर मिलते हैं
साफ़ दिल का
होते हुए भी मनों में
शक पैदा करते हैं
शक ने दुनिया को मारा
हमको भी मारे
तो क्या फर्क पड़ता
फिर झुलसे चेहरे पर
नया चेहरा चढ़ा लेंगे
मन में रोते रहेंगे
दिखाने को हँसते
रहेंगे
22-01-2012
72-72-01-12
1 comment:
हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी
जिसको भी देखना कई बार देखना।(निदा फाज़ली)
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