Sunday, January 22, 2012

एक बार फिर हम पर तेज़ाब डाला गया

एक बार फिर  
हम पर 
तेज़ाब डाला गया
हम पर
लांछन लगाया गया
हमारे चेहरे को
झुलसाया गया
चेहरे पर चेहरा चढ़ा
बताया गया
उन्होंने भी वही किया
जो अब तक सबने किया
वही समझा जो
अब तक सबने समझा
कसूर उनका नहीं
हमारी किस्मत का है
पहले से झुलसे चेहरे को
छुपा कर 
रखने का गुनाह 
जो करते हैं
निरंतर हँसते रहते हैं
नए दोस्त बनाते हैं
उनसे
गले लग कर मिलते हैं
साफ़ दिल का
होते हुए भी मनों में
शक पैदा करते हैं
शक ने दुनिया को मारा
हमको भी मारे
तो क्या फर्क पड़ता
फिर झुलसे चेहरे पर
नया चेहरा चढ़ा लेंगे
मन में रोते रहेंगे
दिखाने को  हँसते 
रहेंगे
22-01-2012
72-72-01-12

1 comment:

induravisinghj said...

हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी
जिसको भी देखना कई बार देखना।(निदा फाज़ली)