Friday, March 2, 2012

गर्मी की दोपहर का क़र्ज़

गर्मी की दोपहर में
हम दोनों
बस स्टॉप पर खड़े थे
कुछ देर तक
एक दूसरे को
कनखियों से देखते रहे
प्यास के मारे
उसका गला सूख रहा था
पसीना बह रहा था
कुछ देर बाद परेशान हो
धीमी आवाज़ में बोली
बहुत गर्मी है ,
प्यास भी लग रही है
बस का पता नहीं कब
आयेगी
मैंने अपना रुमाल
पानी की बोतल
उसकी तरफ बढ़ा दी
उसने मेरी तरफ देखा
फिर मुस्कारा कर
धन्यवाद कहा
जब से अब तक वो
मेरे साथ है
निरंतर मेरी प्यास
बुझाती है
काम से थका मांदा
घर आता हूँ
पसीना पोंछती है
गर्मी की
उस दोपहर का क़र्ज़
अब तक चुका
रही है
02-03-2012
273-08-03-12

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