बसंत के आगमन पर
उस की पीली चुनडी
मेरे मन को ढक लेती है
मैं आँखें बंद कर
बसन्ती
बयार में खो जाता हूँ
बसंत बहार की मादक सुगंध
मेरे मस्तिष्क को
अप्सराओं के संसार में
विचरण कराने लगती
बसन्ती दोपहर में नर्म धूप
ह्रदय में प्यार की गर्माहट को
जन्म देती है
मैं अपनी सुधबुध खो देता हूँ
ऐसा लगने लगता मैं
मैं नहीं हूँ
साक्षात बसंत हूँ
जो धरती पर
महक और खुशियाँ फैलाने
युवा ह्रदयों में प्यार जगाने
उनकी धड़कन बढाने
आया हूँ
उनके बुझे चेहरों को
मुस्काराहट से सजाने
आया हूँ
02-03-2012
272-07-03-12
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