क्या सुकून
क्या बेचैनी होती है
रूबरू हो गया हूँ
क्या हकीकत
क्या ख्वाब होता है
जान गया हूँ
क्या धूप
क्या छाया होती है
समझ गया हूँ
क्या जीना
क्या मरना होता है
समझ गया हूँ
कौन अपना कौन पराया
पहचान गया हूँ
ज़िन्दगी
एक खेल तमाशा
खेल रहा हूँ
01-03-2012
269-04-03-12
2 comments:
jindagi ek khel tamasha....khel raha hu....marvellous!!!!!!!!
zindagi ek khel tamasha,khel raha hu.....marvellous!!!!!
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