Wednesday, April 6, 2011

आज नहीं कल, कल नहीं आज

साथ पढ़ते थे
एक दूजे को चाहते थे
दोनों शर्माते थे
रोज़ सोचते,आज बात
दिल की कहेंगे
प्यार का इजहार करेंगे
झिझक में कह ना 
पाते थे
खुद से ही ,
"
आज नहीं कल कह कर"
काम चलाते
पढाई पूरी हुयी
कॉलेज से विदाई हुयी
मन की
बात मन में ही रही
एक दूजे को पता 
ना था
दोनों कहाँ गए, 
क्या करते हैं
अविवाहित
जीवन व्यतीत 
करते रहे
मन में एक दूजे को
चाहते रहे
दस वर्ष बीत गए
रेलवे स्टेशन पर
वो ट्रेन के इंतज़ार में
बैठी थी
वो भी 
पास आकर बैठ गया
उसको भी वही ट्रेन
पकडनी थी
तभी दोनों ने एक दूसरे
को देखा
दोनों को विश्वाश 
ना हुआ
मुंह से एक साथ
"कल नहीं आज निकला"
झिझक का अंत हुआ
मसला हल हो गया
अब विवाहित जीवन
व्यतीत कर रहे
पिछली बातें याद कर
अब भी शर्माते
06-04-2011
610-43 -04-11


1 comment:

Dr (Miss) Sharad Singh said...

संस्मरणयुक्त सुन्दर कविता....