सुबह से शाम
इंतज़ार करता रहा
खिड़की से
सड़क को देखता रहा
आँखों से
अश्क बहाता रहा
उनका आना ना हुआ
शाम हो गयी
आँखें भी लाल हुयी
उम्मीद
फिर भी कम ना हुयी
अब तक
उनका दीदार ना हुआ
रात भी आ गयी,
रोना कम ना हुआ
ना वो आये
ना पैगाम आया
हिम्मत टूट गयी,
आँख भी लग गयी
सुबह उठा दरवाज़ा खोला
वो बाहर लेटे थे,
हाथ पैर ठन्डे थे
गौर से देखा
तो दम तोड़ चुके थे
दर तक पहुँच कर भी
ना पहुंचे थे
मैं भी इंतज़ार में था,
वो भी इंतज़ार में थे
06-04-2011
609-42 -04-11
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